सोमवार, 8 अगस्त 2011

the world is like blezing fire

कुर्वेन्वेह कर्माणि जीजिविच्छयते समाँ। एवं त्वयि नानथतोऽस्ति ना कर्म लिप्यते नरें।। अर्थात हे मानव सौ वर्षों तक तू जिने की ईच्छा कामना कर वह भी बीना कर्मों में लिप्त या तल्लीन हुए, अर्थात निस्काम कर्म करके। गीता में येगेश्वर कृष्ण यही बातें कहते है।
जलती हई चिता पर बैठ कर तमासा देख रहें है किसके आने का इन्तजार कर है जल्दि करों दूसरा लाइन लगा कर खड़ा है, वह और अधिक तुम्हारें जलने कि राह नहीं देख सकता है बहुत हो गया वह तो आग में कुदने ही वला है क्योंकि वह देख रहा है जो लोग जल रहें है वह सब बहुत मजे कर रहें है, और वह उस जलती चिता पर बैठ कर विणा बजान के आनन्द से वन्चित नहीं रह सकता है। कयोंकि वह कोई साधक तो है नहीं महात्मा वुद्ध या संकराचार्य की उसने अपने ईन्द्रियों पर शाशन कर लिया है या उन्हें अपने वश में कर लिया यह मानव बड़ा असमन्जस में है। क्योकि यह पढ़ा लिखा कम है या यु कहें कि गवार है। ऐसे को कौन फिक्र करता है क्योकि यहा किसको अपना लोग समझते जो अपना है वह तो उसको भी सजा धजा कर बैन्ड बाजे के साथ हाथी, घोड़े, कार हवाईजहाज पर बैठा कर ले जाते है, ऐसा कौन पढ़ा लिखा होगा जो नहीं बैठना चाहेगा भले ही जीवन दर्द की दास्ता बना कर जीने कि इच्छा जरुर रखता है। लेकिन वह आदम ऐसा नही जिसकी बतें मैं कर रहा हूं। मै उसकी बाते कर रहा हूं जो है मगर उसके पास कपड़े नहीं है भोजन नहीं है। रहने के लिये घर नहीं है। वह रहता तो है मगर जमिन पर नही वह भार से रहित बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली है। वह अदृश्यआत्मा है। जिसको आत्मज्ञान होता है आत्मा ही समझ रही है कि यहां कैसा तमासा लगा है क्या बेचा और खरीदा जा रहा है जबकि या सब कुछ मिट्टि है बड़े मजे ले रहे है लोग, लेकिन सारें जरुरत से अधिक समझ दार है ईसलिय ही यह सब जलने में रस ले रहें और आत्मा जानती है की स्वयं जलती हुई चिता है फिर तमासा कैसा क्या स्वयं का भरोसा नहीं है। ऐसे ही लोगों से संसार भरता जा रहा है या भर चुका है। बदलना कौन चाहता आत्मा जानती है की बदने वाली भोतिक वस्तु नहीं है।

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